लाम्भरी जोत की यात्रा
|
The Incredible location of Lambhri (Thanks Google earth) |
मैं अपने घुमक्कड़ स्वभाव के चलते हर वर्ष ग्रीष्मकाल में किसी न किसी स्थानीय स्थल पर भ्रमण के लिए अवश्य निकलता हूँ। माह मई वर्ष 2016 में मैंने बंजार घूमने का मूड बना रखा था और गुप छुप अपने एक चचेरे भाई के साथ सकरनी पर्वत से भी ऊपर लाम्भरी जोत के दर्शन हेतू जाने के लिए उत्सुक था। एक दिन गलती से मैंने वट्सऐप के किसी एक ग्रुप में इस सन्दर्भ में एक अपडेट चस्पाँ कर दी कि मैं उक्त जोत के ऐक्सकर्शन पर जा रहा हूँ। फिर क्या था,कुछ इस ग्रुप के मित्र भी वहां चलने को तैयार हो गए।
इस में सर्वप्रथम श्री नवांग ग्याल्छन् बोद्ध जी जो कि हिमाचल प्रदेश सरकार के विद्युत विभाग से रिटायर मुलाज़िम हैं और जिन के साथ मैं पूर्व में खीर गंगा ट्रैकिंग कर चुका था,ने तुरन्त हामी भर दी। बोद्ध साहब कई कठिन ऐक्सकर्शन जैसे कि किन्नर कैलाश,श्री खण्ड,कुगती जोत से मणि-महेश कर चुके हैं।उन्होंने अपने एक अन्य जांबाज़ मित्र श्री तोप सिंह जी को इस ट्रेकिंग में चलने को तैयार किया। श्री तोप सिंह जी हिमाचल सरकार वन विभाग से रिटायर मुलाज़िम हैं और खरदुंगला जैसे ऊँचे दर्रे पर पिछली सदी के 90 के दशक में बाइकिंग और साइकलिंग कर लोहा मना चुके हैं।उन का नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकार्ड में भी शुमार है। साथ ही लाहुल के ही एक उच्च पद से सेवानिवृत्त वरिष्ठ उम्र के बैंक अधिकारी श्री रामनाथ खिंगोपा जी भी इस पावन पावन यात्रा में चलने को तैयार हुए। यह भी अपने जांबाज़ स्वभाव के चलते हर तरह के साहसिक गतिविधियों में रूचि रखते हैं।यह तीनो शख्स सीनियर सिटिज़न थे। मेरी ही उम्र के एक अन्य शख्स श्री टशी वांगचुक उर्फ़ सुशील जी जो इन्कम टैक्स विभाग में कार्यरत हैं और बेहद अच्छे फोटोग्राफर और प्रकृति प्रेमी हैं,वह भी लाम्भरी की यात्रा को अंतिम समय में तैयार हुए। इस तरह हम कुल 5 लोगों ने दिनांक 07.05.2016 को लाम्भरी यात्रा पर जाने का निर्णय किया।
|
Our purposed trekking route |
इस से पहले हमने वट्सऐप के जरिए इस जगह की लोकेशन ,ट्रेकिंग के सुलभ रास्ते आदि के बारे में खूब परिचर्चा की थी और हर मेंबर से ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने को कहा। श्री रामनाथ जी का ससुराल बंजार तहसील में पड़ता है अत: उन्होंने अपने स्थानीय जान-पहचान के लोगों के जरिए रास्ते का पता लगाया। उन्होंने बंजार तहसील के ग्याघी से सारथि और हिडब नामक गाँव के ट्रैकिंग रुट से से लाम्भरी जोत जाने का समर्थन किया। उन के अनुसार हिडब से करीब 3 घंटे की चढ़ाई के उपरान्त लाम्भरी पहुंचा जा सकता है। वही श्री तोप सिंह जी ने अपने वन विभाग के स्थानीय करीबियों से पता लगाया कि ग्याघी की बजाए गुशैणी घाटी के सरची और जामणा गांव से प्रस्थान करना ठीक रहेगा। उन के अनुसार सरची तक गाड़ी में पहुंचा जा सकता है और वहाँ से भी 3 घंटे की हल्की टेढ़े चढ़ाई वालो ट्रेकिंग रुट से लाम्भरी जाना होगा। जैसा कि दोनों रास्तों से एक ही दिन में जाना और आना था इसलिए शाम को हमें या ग्याघी में या साई रोपा में विश्राम करना आवश्यक दिख रहा था।इस तरह हमारे पास ट्रैक रुट के दो विकल्प उपलब्ध थे।
इस तरह काफी विचार विमर्श के उपरान्त हम ने सरची वाले रुट से ही ट्रेकिंग पे जाने की ठान ली। दो दिन पूर्व रामनाथ जी ने ऐन. जी. बोध साहब से वट्सऐप पर ही लॉजिस्टक सामान ले जाने की पुष्टि कर ली। इस से पहले रामनाथ जी के हिदायत अनुसार किसी लोकल गाइड को ले जाना ज़रूरी समझा गया क्यूंकि गलत रास्ते से जाने से समय और श्रम अधिक लग सकता था। वैसे भी हम सभी इस रुट से अपरिचित थे और प्रथम बार वहां जा रहे थे। यह भी पता चला कि सरची जो कि साई रोपा से लगभग 20 किलोमीटर दूर था,को एक कच्ची सड़क थी जिस में अपनी व्यक्तिगत गाड़ी को ले जाने की बजाय किसी बोलेरो या पिकअप गाडी को हायर करना उचित था। इस तरह एक गाइड और महिन्द्रा ज़ायलो टैक्सी का प्रबन्ध श्री रामनाथ जी ने समय पर करवा दिया।
मैं एक दिन पूर्व अपनी बुलेट बाईक से दिनांक 06.05.2016 को कुल्लू पहुंचा और वहां ढालपुर में रथ मैदान के साथ लगते रांझणा टी स्टाल में बोद्ध साहब और तोप सिंह जी से अगले दिन की यात्रा से रिलेटेड कुछ बिंदुओं पर संक्षेप में वार्तालाप किया और अगले दिन सुबह ठीक 6 बजे मैंने ढालपुर मिलने का वादा किए अपने घर पतलीकूहल को प्रस्थान किया। मोबाइल फोन के ज़रिए अन्य सभी सदस्यों को भी अपने अपने नजदीक वाले सड़कों के पोइंट पर सुबह तैयार रहने का आग्रेह किया गया।
अगले दिन प्रात:ठीक समय पर में ढालपुर पहुंचा और एन. जी.बोद्ध साहब ने अपने घर मुझे सुबह की चाय के लिए आमन्त्रित किया।मैंने अपनी बाइक उन के यहां पार्क करनी थी।बौद्ध साहब नीली जीन,काले हल्के जैकेट ,मफलर और कुल्लुवी टोपी पहने बिल्कुल फिट लग रहे थे।हम ने पड़ोस में सुशील को भी तुरन्त तैयार हो कर आने को कहा।वह भी नहा-धो कर नीचे पार्किंग में पहुंचा।सुशील अपने काऊ-बोय हैट और आर्मी कलर केजुअल आऊट-फिट में बेहद चुस्त-दुरुस्त लग रहे थे।
|
Swift car of N.G. Bodh sahb |
यहां से ठीक 6:30 बजे बौद्ध साहब की स्विफ्ट गाड़ी में हमने प्रस्थान किया।आगे गांधी नगर में तोप सिंह जी भी बैग ले कर सड़क में हमारा इंतेज़ार करते हुए मिले।वह भी हरे रंग के पी-कैप और पीले रंग के विंड और वाटर प्रूफ स्पेशल जैकेट में जबरदस्त फिट नज़र आ रहे थे।आगे शास्त्री नगर में हमारे पांचवे वरिष्ठ साथी श्री रामनाथ जी भी कपूर पेट्रोल पम्प के पास मिले।वे तो चार्ल्स शोभराज वाली केप में नीले ज़िन्ज़ में बेहद फिट और युवा लग रहे थे।यहां कार में पेट्रोल भरवा कर हम लोगों ने आगे को कूच किया।
|
Forest Guest House at Sai Ropa |
कार में एक-दूसरे से गप-शप मारते हम करीब 8 बजे साँई रोपा पहुंचे।यहां से आगे हम ने टेक्सी बुक करा रखी थी और कार को यहीं किसी सुरक्षित जगह में पार्क कर के हम ने आगे प्रस्थान करना था।तोप सिंह जी के सलाह पर हम जंगलात महकमे के कार्यालय जो कि सड़क के दायें ओर ऊपर बनी है,वहां अपनी कार ले गए।हम ने वापसी में रात्री-विश्राम भी यहीं फारेस्ट महकमे के गेस्ट-हाउस में सोच रखी थी किन्तु वहां ग्रेट नेशनल पार्क देखने आए पर्यटकों का तांता लगा हुआ था।इसलिए वहां के केयर-टेकर ने अपनी अस्मर्थतता बताई।यहां मैंने एक सेकिण्ड ऑप्शन रखा था।आगे कुछ दूरी पर तीर्थन नदी के साथ लगते मुंगला नामक जगह में मेरे रिश्तेदारों का एक नया होम-स्टे था,इसलिए अब मैंने वहां चलने को कहा।यहां जायलो टेक्सी का उस्ताद भी हमारा इंतज़ार कर रहा था।
मुंगला में बहुत कोजी भगवती होम-स्टे में सबसे पहले हमने बोद्ध साहब की कार शेड में पार्क की और मैंने अपने रिश्तेदार यज्ञ चन्द को चाय और ब्रेक फ़ास्ट के लिए कहा।दो कमरे खुलवा कर हम ने अपने कुछ सामान वहां रख दिए।होम-स्टे में साफ़-सफाई बहुत अच्छी थी। ब्रेक-फ़ास्ट में ब्रेड आमलेट का मज़ा ले कर अब हम आगे जाने को तैयार हुए।यहां सब ने एक समान राशि एकत्रित कर मुझे सौंप दिया ताकि खाने-पीने,रहने के अतिरिक्त टैक्सी के खर्चे को बराबर वहन किया जा सके।
|
Near Mungla |
इस समय सुबह के 9 बज चुके थे।तीर्थन नदी की वैली बेहद खूबसूरत थी।स्वच्छ पानी के खड में मशहूर ट्राऊट मछली के लिए यह वैली मशहूर है।गुशैणी कस्बे से कुछ किलोमीटर पीछे एक नगलाड़ी नामक जगह जहां एक पुलिया पार बाएं दिशा को थी, के पास के डायवर्शन से हम सरची वाले सड़क को मुड़ गए।आगे सड़क कच्ची थी किन्तु ठीक थी और हम कई मोड़ों से होते हुए ऊंचाई की और बढ़ रहे थे। तीर्थन घाटी के दूरस्थ गांव पहाड़ों के ऊपर बेहद खूबसूरत दिख रहे थे। राह में एक बड़ा पहाड़ी गाँव आया जिस में एक विभिन्न पहाड़ी शेली का एक भव्य मन्दिर बना हुआ था।इस गाँव का नाम बांदल था और यह मन्दिर दुर्गा माता का था।इस तरह कई और खूबसूरत गाँव जैसे कि तिलहाड और बाड़ीगढ़ भी रास्ते में आये।
|
Just a miles before Sarchi |
हम ने सब से अच्छी समझदारी यह की थी कि अपनी कार की बजाए हेवी पावर जीप जायलो ले आये थे क्योंकि सड़क न सिर्फ कच्ची और चढ़ाई वाली थी बल्कि कई जगह बड़े खड्डों में पानी की वजह से दल-दल भी थ। जायलो का ड्राइवर ऐसे सड़क का महारथी लग रहा था और बड़ी सुलभता से गाड़ी चला रहा था।नीचे को देखने पर बस जंगल और खाईयां थी और ड्राइविंग में ज़रा सी चूक होने पर गाड़ी पहाड़ी में पलट सकती थी।
|
Rustic beauty of Sarchi |
इस तरह कई टेढ़े-मेढ़े मोड़ों को गाड़ी से रौंदते हम सरची में पहुंचे। यह एक बेहद खूबसूरत पहाड़ी गाँव था,अधिकतर लकड़ियों से बने पुरानी शेली के मकान थे।गांव का वातावरण बेहद सोम्य लग रहा था और चारों ओर सादगी का आलम था।हमें पता चला कि कुछ ही दिनों पहले सरची तक बस का ट्रायल हुआ है यानि यह गाँव अभी तक तीर्थन घाटी के दुर्गम गांवों की लिस्ट में शुमार था। लोग पूर्व में सड़क बनने से पहले पगडंडियों के सहारे ही नीचे गुशैणी और बंजार को जाते थे। बाजार नाम से बस एक चाय की दुकान वहां थी। इस दुकान में हम ने नमकीन,चिप्स,पाई,टाफियां वगेरह खरीद लीं।अब हम सड़क के अंतिम छोर जामणा नामक गांव में पहुंचे और जीप के ड्राइवर को शाम को वहीं हमारा इन्तेज़ार करने का आग्रह कर के अब हम पैदल आगे को चल पड़े।इस समय सुबह के 11:30 बज चुके थे।
|
In side Jamna |
|
Jamna |
जामणा गांव सरची से मात्र डेढ किलोमीटर ऊपर है।यह बेहद दुर्गम गांव सुबह बहुत जहीन लग रहा था। बाग-बगीचों और खेतों में गेहूं की हरयाली लेह-लहा रही थी। घर बेहद ही साधारण लग रहे थे।गांव के बच्चे हमें उत्सुकता से निहार रहे थे। ऊंचाई की वजह से मौसम कुछ खराब सा लग रहा था।ऊपर लाम्भरी की ऊंचाइयों को हम ने अंदाज़े से निहारा।वहां घटाएं बेहद डरावनी दिख रही थी और बारिश का अन्देशा सा लग रहा था।
|
Semi-modern dwellings at Jamala |
|
Guiding the guide |
यहां हमें लोकल गाइड मोहर सिंह नामक एक युवा हमारा इन्तेज़ार करता हुआ मिला।ठेठ सेराजी स्टाइल वाली हिंदी में वह हम से बतिया रहा था। यह जाँबाज़ लड़का साधारण कपड़ों और जूतों में बहुत सादगी लिए था।जब हम ने उस से लाम्भरी की दूरी पूछी तो उस ने जामणा से 20 किलोमीटर बताया और ठीक रफ़्तार में मात्र 2 घण्टे में ऊपर जोत पर पहुंचने के समय लगने के बारे अवगत किया ।इतनी दूरी सुन कर मैं थोड़ा सकपका गया क्योंकि वापिस आना-जाने में बेहद थकान पूर्ण यात्रा हो सकती थी।खेर मुझे अन्देशा हुआ कि स्थानीय लोगों को किलोमीटर के दूरी की समझ शायद कम है और यह ट्रेकिंग मेरे गूगल-अर्थ पे किए एक्सर्साइज़ के अंदाज़े से मात्र 5-7 किलोमीटर लग रहा था।खेर अब हम राह में बढ़ चुके थे।रामनाथ जी ने व्यंगपूर्ण अंदाज़ में उससे यह भी पूछा कि कहीं रास्ते में अंकल तो नहीं मिलेंगे।यहां अंकल से उनका तातपर्य भालुओं से था।
जामणा गांव के ऊपर किसी बागीचे में ओलों से बचने के लिए सेब के पेड़ों पर बहुत खूबसूरती से सफेद जालियां बिछाई गयी थी।गांव के ऊपर एक विशाल मैदान था और वहां क्रिकेट की पिच बनी हुई थी।गाइड ने बताया कि वहां टूर्नामेंट भी होता है।एक जगह उसने हमें एक पानी का पाइप जो जंगलों से नीचे को था,से पानी अपने बोतलों में भरने का आग्रह किया और यह भी बताया कि यह पानी जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है।अब हम घने जंगलों में समा गए।
|
Fuel wood in abundance |
दयार,तोश वेरायटी के दरख्तों से सटा यह जंगल का इलाका बेहद भयावह लग रहा था।मुझे गाइड ने कई तरह की जंगली जड़ी बूटियां जैसे कि अर्जुन की छाल ,कोरी,छतरी ,पतीश ,तलशी ,चुंखारी ,तंगुल और धुपनु के पेड़ पौधे दिखाए। यहां के जंगलों में जंगली मशरूम यानि
गुच्छियों की भी भरमार होती है जिसे स्थानीय बोली में
छुंछुरु भी कहते हैं। जंगल में एक अलग तरह की वीरानी और ख़ामोशी थी।जगह-जगह बड़े-बड़े पेड़ गिरे पड़े थे और लकड़ियों की भरमार थी।रास्ता ठीक था किन्तु कई जगह फिसलनदार भी था। सब से आगे बोद्ध साहब अपने जोशीले स्वभाव और ट्रेकिंग के अनुभव के चलते हम सब को आवाज़ दे कर टीम का स्वत: ही प्रतिनिधित्व कर रहे थे। तोप सिंह जी और मेरी चलने की रफ़्तार सामान्य थी किन्तु सुशील और रामनाथ जी बेहद मज़े और आराम से चढ़ रहे थे।गाइड भी अपनी मद्धम रफ़्तार में था।
अभी कुछ ही दूरी पर घने जंगल में जब हम चढ़ रहे थे कि नीचे अचानक एक काले रंग का छोटा सा भालू गर्जन करता हुआ निकल गया।गनीमत यह रही कि इस ने घात लगा कर वार नहीं किया वरना हम लोगों को जख्मी कर सकता था।मैंने जोर से आवाज़ दे कर सब को एलर्ट कर दिया ।यद्यपि यह जगह गांव से ज्यादा दूर नहीं थी किन्तु ग्रेट नेशनल पार्क की सीमा साथ होने के चलते शायद जंगली जानवर वहां कभी-कभार दिख जाते हों।आखिर जिस अंकल की बात रामनाथ जी कर रहे थे,उस के दर्शन वहां अनायास हो ही गए।अब सबसे आगे चलने वाले बौद्ध साहब बेहद एलर्ट हो गए और जयकारा मार कर वह टीम की हौसला-अफ़ज़ाई करने लगे।मैं भी उन के साथ बीच-बीच में जोर-जोर से चीखें मार कर जंगल में गुंजन करने लगा ताकि कोई जँगली जानवर हमारे पास न फटक सके।गाइड के अनुसार तेंदुए ,भेड़िए भी इन जंगलों में नज़र आते हैं और कई तरह के अन्य पशू पक्षियों की वहाँ भरमार है। एक पक्षी के गूंजने की अजीब से आवाज़ ने मेरा ध्यान आकर्षित किया जिसे मैं पहली बार सुन रहा था।
|
Green meadows in amidst |
इस बीच एक हरे विशाल मैदान में हम पहुंचे।देखने में यह शिमला के मशोबरा के गोल्फ-कोर्स मैदान की तरह लग रहा था। यहां गांववासियों के भेड़-बकरियां चर रही थी।इस मखमली मैदान के बिलकुल ऊपरी छोर पर हमने कुछ देर विश्राम करने की ठानी।अब फिर से घना जंगल आरम्भ हुआ किन्तु ऊंचाई काफी बढ़ गयी थी।एक जगह पहाड़ से ढेरों चट्टानों की बाढ़नुमा सी अजीब दिखती परत थी जो शायद पूर्व में दवाब से नीचे को डेह गए थे। बीच में दो और छोटे मैदान आए और वहां गद्दियों के थाच यानि रेन-बसेरा बने हुए थे।बस यहां कल-कल करता हुआ एक चश्मा बह रहा था अन्यथा रास्ते में कहीं भी पानी का स्त्रोत नहीं था।रास्ते में ढेरों दरख्त की बड़ी टहनियां गिरी पड़ी थी इसलिए आगे बढ़ने में दिक्कत आ रही थी।
|
Most toughest part of route |
अब हम इस रास्ते के सब से कठिन छोर पे थे।यह करीबन 1.5 किलोमीटर दूरी वाली एक गलीनुमा सीधी सबसे कठिन चढ़ाई थी।यह एक नाला भी था और छाँव वाले ओट में कई जगह बर्फ के अवलांच् पड़े हुए थे।यहां दो-दो कदम रखने पर सांस बेहद फूल रही थी और कदमताल जैसे एकदम थम से गयी थी।एन. जी.बौद्ध साहब जेयकारे मारते बहुत ऊपर निकल गए थे।दूसरे नंबर पर में उन से करीब 15 मिनट पीछे था।बाकी कोई सदस्य नज़र नहीं आ रहा था।नाले में गुलाबी रंग के जँगली फूल बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे।
|
First base of Lambhri towards sarchi |
जहां यह रास्ता खत्म हुआ वह दरअसल लाम्भरी जोत का अंतिम पड़ाव था।यहां पहुंच कर बंजार तहसील के दोनों और की वेलियाँ दिख रही थी।दूसरी और शोझा और घ्याघी गांव बहुत नीचे नज़र आ रहे थे और इस तरफ सरची और गुशैणी का इलाका नज़र आ रहा था।ऊपर कुछ किलोमीटर की दूरी पर बेहद अधिक ऊंचाई में लाम्भरी माता का खुले में मन्दिर नज़र आ रहा था और झंडे हवा से लहलहा रहे थे।मैंने तुरन्त यहां फोटोग्राफी करनी शुरू कर दी।सबसे पहले पहुंचने वाले बौद्ध साहब यहां ख़ुशी से गुनगुना रहे थे और आवाज़ दे कर नीचे अन्य साथियों को पुकार रहे थे।थोड़ी देर में तोप सिंह जी भी हाँफते हुए उस पोइंट पे पहुंचे।इस के कुछ देर बाद सभी सदस्य भी बारी-बारी से ऊपर पहुंचे।सुशील जी भी फोटोग्राफी का शौकीन रखते हैं,वह शायद मज़े से रास्ते में फोटो क्लिक करते रहे,इसलिए सबसे पीछे थे।
|
Pulaoo |
अब बोद्ध जी के हिदायत अनुसार लंच को इस जगह पर करने का निर्णय लिया गया और कैमरा के अलावा अपने बैग वगेरह भी इस जगह पर छोड़ने को कहा गया।ऊपर पवित्र जोत में जोगनियों का वास माना जाता है इसलिए हम ने खाने-पीने का सामान वहां न ले जाने का अच्छा निर्णय लिया। मैं घर से चिलड़ और मिर्ची वाली आलू की सब्जी के साथ-साथ पलाऊ बना के लाया था।अन्य सभी जनों ने भी भांति-भांति के भोजन लाए थे। थकान की वजह से भोजन बेहद स्वादिष्ठ लग रहा था।अब इस वक्त दिन के 2:30 बज चुके थे।अब सामने चट्टानों के मध्यस्थ कुछ दूरी तक फिर सीधी चढ़ाई वाला रास्ता था।हम आगे बढ़े।
जैसे ही ऊपर पहुंचे वहां का नज़ारा बेहद जहीन था।रिजनुमा पहाड़ी के ऊपर दूर-दूर तक खाली मैदान सा दिख रहा था।ऊंचाई की वजह से पेड़-पौधे और वनस्पती का फिलहाल नामोनिशान नहीं था।लगभग 1 किलोमीटर का फासला तय कर के अब हम बिल्कुल लाम्भरी माता के मन्दिर के पास पहुंचे।
|
Mata lambhri's dwelling |
यह मन्दिर लाम्भरी जोत के एक रिजनुमा मैदान के कोने में बिल्कुल खाई के साथ शोझा की दिशा में बना है और खुले आसमान के नीचे है क्योंकि इस में कोई छत वगैरह भी नहीं है ।कुछ पत्थरों को इकट्ठा कर के एक छोटा सा चबूतरा सा बनाया गया है जिस में कुछ लोहे व लकड़ी की छड़ों में लाल रंग के कपड़े झंडे के रूप में बांधे गए थे।हवा की वजह से हमें धूप जलाने में कठिनाई हो रही थी।
इतनी खूबसूरत जगह में पहुंच कर हर किसी का मन ख़ुशी से विभोर हो चुका था।हम जोर-जोर से माता लाम्भरी और श्रंगा ऋषि के जयकारे लगा रहे थे।एक जगह हम ने अपने जूते उतारे और नंगे पाँव मन्दिर की और बढ़े।
मन्दिर में माथा टेकने और धूप-बत्ती करने के पश्चात अब हम ने नज़ारों का आनंद लेना शुरू किया।अब इतनी सुंदर जगह पहुंच के फोटोग्राफी न हो,यह नहीं हो सकता।सब ने अपने मोबाईल फोन वगैरह से वादियों का फोटो लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
|
Superb ridges |
सब से सुखद बात यह थी कि उस समय न ही वहां बारिश हो रही थी और न ही तेज हवा चल रही थी। मई माह में भी जगह-जगह जोत में बर्फ की मोटी चादर फेली हुई थी।इस से यह साफ़ हो गया कि यह बंजार की सब से ऊँची चोटी है।लाम्बा लाम्भरी के जोत पर चलना मून वाक करने के समान है।
मुझे किसी ने यह अवगत कराया था कि अपने साथ लाम्भरी में छाता अवश्य ले जाना क्योंकि जोत में अचानक मौसम के परिवर्तनशील होने से मूसलाधार बारिश होती रहती है और ऐसे में वहां छिपने के लिए न कोई पेड़ मिलता है और न ही किसी पहाड़ी की ओट।यह बात बिल्कुल सत्य थी लेकिन हम बेहद भाग्यशाली लोग थे क्यूंकि माता के आशीर्वाद से सब कुछ ठीक था।
फोटोग्राफी करते समय कुछ देर धूप भी खिली।लाम्भरी का सम्पूर्ण इलाका जो कि समुद्रतल से 3475 मीटर ऊँचा है ,मेरे अंदाज़े से 15 किलोमीटर का हो सकता है जो उत्तर-पश्चिम की ओर सरयोलसर झील की दिशा की ओर फैला है।
|
Lambhri stretch towards Saryolsar Lake |
यदि ऊपर रिजनुमा मैदानों से ट्रेकिंग की जाए तो शायद झील तक पहुंचने में पूरा दिन लग सकता है।लाम्भरी से हिमालय पर्वत के दर्शन 360 डिग्री एंगल में होते हैं। चारों दिशाओं में बस पर्वत ही पर्वत दिखते हैं। यहां से जलोड़ी दर्रा,रघुपुर भी दिख रहा था।मौसम खराब होने की वजह से हम श्रीखण्ड जोत की पर्वतमाला व पीर-पंजाल की चोटियों को अच्छी तरह निहार नहीं सके।साफ़ मौसम होता तो शायद सभी शिखरों के दूर से दर्शन भी कर सकते थे।
|
Beauty of Lambhri |
लगभग 1 घण्टा वहां वादियों का आनंद लेने के उपरांत हम वापिस चल पड़े।हैरानी की बात यह थी कि अब जोत में घने बादल उमड़ पड़े थे।चारों और कोहरा बिछ गया था और मौसम खराब होने लगा था।ऐसे में अब हमारा प्रस्थान करना उचित था।हम ने कुछ देर बर्फ में भी अठखेलियां खेली।इस समय शाम के 4:30 बज चुके थे।
|
Abundance of snow in May month in higher reaches |
अब हमें रास्ते का ज्ञान था इसलिए दो-दो की टोली में नीचे को गप-शप मारते हुए उतरते जा रहे थे।बोद्ध साहब काफी आगे निकल चुके थे।फिर वह हमें नीचे उसी विशाल हरे मैदान में हमारा इन्तेज़ार करते हुए मिले।कुछ देर वहां क्षणिक विश्राम करने के उपरांत हम गाना गाते-गाते आगे बढ़े।
|
Sarchi from birds eye view |
सबसे पहले बोद्ध साहब सर्वप्रथम जामणा होते हुए सरची पहुंचे। वह बेसब्री से हम सब का इंतेज़ार कर रहे थे।मैं जामणा से गांव के कुछ युवकों से बात-चीत करता हुआ लगभग 7 बजे शाम को सरची पहुंचा। वहां जायलो टेक्सी का ड्राइवर हमारा इन्तेज़ार कर रहा था।हमने उसे जामणा की ओर जा कर बाकि के तीन साथियों को ले के आने को कहा क्यूंकि मुझे यह अन्देशा हो रहा था कि कहीं रामनाथ जी थकान से चूर न हुए हो।
तब तक मैं और बोद्ध साहब ने सरची के ढाबे में कड़क चाय का आनंद लिया।थोड़ी देर में गाड़ी में बाकि के मेम्बरान भी आ गए।सब बिलकुल तुष्ट और तरोताज़ा लग रहे थे और किसी के भी चेहरे में कोई थकान की कोई शिकन नहीं थी।परम पावन यात्रा के सफल आयोजन की सन्तुष्टि सब के दिल में थी।
|
Bye-bye guide |
"यहां रामनाथ जी ने एक तथ्य से हमें अवगत कराया कि जामणा से लाम्भरी की वास्तविक दूरी 11.5 किलोमीटर थी और यह उनके मोबाइल फोन के ऐप्स के अनुसार था। यानि हम सुबह से कम से कम 22 किलोमीटर ट्रेकिंग कर चुके थे।"
रामनाथ जी ने गाइड मोहर सिंह को उचित मुआवज़ा देकर जामणा में रुख्सत कर दिया था। चूँकि मई माह में दिन लम्बे होते हैं,इसलिए अभी अँधेरा नहीं था।फिर से कईं मोड़ों एवं 17 किलोमीटर की दूरी के बाद हम करीब 8:30 बजे नीचे गुशैणी मॉर्ग पे पहुंचे।
|
Rest in home stay |
हम मुंगला में करीब 9 बजे पहुंचे।होम-स्टे के मालिक यज्ञ चन्द ने सर्वप्रथम हमें चाय पिलाई और तीर्थन नदी के खड की ट्राउट मछलियों को बेहतरीन तरीके से पका कर हमें परोसा।तोप सिंह जी,सुशील और मैंने थकान मिटाने के लिए साथ में कुछ व्हिस्की और बीयर मंगा ली। इस बीच खूब गप-शप मारते रहे और ठीक 10:30 बजे रात्रि हम डीनर कर के सो गए।थकान की वजह से बिस्तर में घुसते ही हम सब चिर निद्रा के आगोश में चले गए।
प्रात:7 बजे उठ कर होटल में लगे सोलर पानी से स्नान करने के उपरांत हम सब ने ब्रेकफास्ट में आलू के परोंठे दहीं के साथ चखे और फिर बोद्ध जी की स्विफ्ट कार में कुल्लू की और चल पड़े।
|
Lambhri Selfie |
इस तरह हमारी यह फटा-फट यात्रा बहुत सफल रही जिस में रहस्य-रोमांच का आनंद लेने के साथ-साथ एक अलग तरह की आध्यात्मिक अनुभूति महसूस किए वापिस अपने-अपने घरोंदों को अनमोल याद लिए लौटे।इस यात्रा से हम सब के
शारिरिक क्षमता का भी परिक्षण हुआ और यह मनोबल मिला कि हम और भी कठिन यात्राओं की ट्रेकिंग की क्षमता रखते हैं।
जय लाम्भरी माता।
राहुल लारजे ने लाम्भरी ट्रेकींग की कहानी चित्र के साथ इतनी खूबसूरत लिखी है कि जो भी इस कहानी को पढ़ेगा ऐसा मेहसूस करेगा जैसे ट्रेकींग की बिडियो अपने मन मे देख रहा हो।ट्रेवल बलाग को हर जांवाज़ प्रकृति प्रेमी और एडबेंचर प्रेमी बहुत लगन से पड़ता है।इस ट्रेवल वलाग पर अनेक जांवाज़ों के कमेंटस आएंगे।कुछ तो इस अद्धभुत ट्रैकींग को करने की भी योजना बनाएंगे।क्योंकि ट्रेकींग बैसे उतनी मुश्किल भी नही है यदि दल नेता मेरे जैसा हो।मैं दल के सदस्यों को थकने नही देता हुं।उनके साहस,मनोबल और जोश को हमेशा बढ़ाने की कोशिश करता हुं।यह मेरी बिशेषता है।
ReplyDeleteआप ईतनी अचछी हिन्दी के शब्द ज्ञान रखते हैं।अगर आप थोड़ा सा कथित जगह की ईतिहास,भौगोलिक अबस्था,लोगों की सामाजिक ,आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन पर भी प्रकाश डालते तो सोने मे सुहागा वाली कहावत चरितार्थ हो जाएगी।यह मेरा दावा है।क्योंकि हर पढ़ने वाला विस्तृत ज्ञान चाहता है।
आपकी इस कहानी को बार बार पढ़ूंगा।कहानी बहुत रोमांचक है।हमेशा लिखते रहिए।