वर्ष 2019 और माह अप्रैल।सोशल मीडिया के मकड़ मायाजाल वट्ससऐप रूपी तंत्र में एक ग्रुप का मेम्बरान हूँ जिस में जोखिम लेने वाले व सरफिरे से दिखने वाले कुछ दुःसाहसी व घुमक्कड़ी लोगों का जमावड़ा है जो अपने को खतरनाक जांबाज़ मानते हैं।उन पागलों में शायद मेरा भी नाम शूमार हो। इस ग्रुप में मैंने गलती से कुल्लू के तीर्थन घाटी के बठाढ़ से लगते ट्रेक रुट बशलेऊ जोत का ब्याने जिक्र फरमाया। फिर क्या था देखा-देखी में बशलेऊ प्रोग्राम हो गया मेच्योर।
दरअसल मेरा एक कज़िन जो कि बंजार के जीभी नामक हेवनली स्थली से बिलोंग करता है।उस की मकबूलियत में मैंने बंजार घाटी के कई एक्सकर्शन भी मुक्कमल किए हैं। उस के मेमेमोरी स्टोर हाउस के फलेश बेक के गनीमत के अनुसार जब वह नोवीं में इल्म हासिल कर रहा था तो अपने गांव के देवता के साथ इस बशलेऊ जोत से बागा सराहन को फतह हुआ था।
उस ने यह बताया था कि बशलेऊ को लांघना बेहद आसान है।उस के हाले-बशलेऊ-ब्यानात से दिल में एक तमन्ना जाग गयी कि हम भी कभी इधर से जाएंगे ही जाएंगे। वैसे भी इसी साल 2019 के मार्च महीने में मैं उस के साथ बंजार के शौझा फिर बठाढ़ तक रेकी कर आया था और ठान लिया था कि इस वर्ष पक्का इस जोत की एक्सकर्शन पर अवश्य निकलना ही है।
तो उस वट्सएप ग्रुप के कुछ वरिष्ठ उम्र के मेम्बरान जो खूब घूमने-फिरने की इच्छा रखते हैं,ने मुझे बारम्बार याद दिलाना शुरू कर दिया कि जून के माह में बशलेऊ जाना ही जाना है।पहले मई माह में जाने का कार्यक्रम था किन्तु यह माह बेहद ही व्यस्तता से भरा था क्योंकि इस वर्ष देश की संसद के लोकसभा सदन के लिए राष्ट्रीय चुनाव होने थे।चुनाव की तिथि भी निर्धारित थी 19 मई और परिणाम आने थे 23 मई 2019 को।एक पब्लिक सेक्टर के उपक्रम का मुलाज़िम होने के नाते यह यकीनन था कि चुनाव में ड्यूटी लगनी ही लगनी थी।वही हुआ बतौर पर्यवेक्षक कांगड़ा के मटौर से लगते धीरा तहसील के पालमपुर-सुजानपुर टिहरा राज्य मार्ग से लगते एक गांव में चुनाव से एक दिन पूर्व जाना पड़ा।यह तथ्य मैंने अपने ग्रुप के मेम्बरान को बता दिया था कि बशलेऊ जोत को जाना जून में ही बेहतर होगा।वैसे भी वर्ष 2019 के सर्दियों में भारी हिमपात के चलते ऊंंचाइयों में बहुत बर्फ होने का अंदेशा था।
खैर चुनाव के उपरांत 26 मई से 31 मई तक गुरुग्राम में बने विभागीय इंस्टिट्यूट ऑफ फ़ूड सिक्योरटी में आयोजित की जा रही एक प्रशिक्षण में भी मैंने जाना था।इस लिए बशलेऊ हाईकिंग के चक्कर में व दिल्ली आने-जाने में लगने वाले समय को बचाने के लिए मैंने पहले ही योजनवत एडवांस में कांगड़ा के गगल एयरपोर्ट से दिल्ली व वापस आने-जाने का हवाई टिकट भी बुक कर लिया था।मोदी काल में हवाई यात्रा ऑन-लाइन हैं और सस्ती दरों पे भी।
खैर इस बीच ट्रेनिंग के दौरान दिल्ली में एक दुखद समाचार सुनने को मिला।बंजार वाले कज़िन के पिता जी यानी मेरे सगे चाचा जी का अचानक बीमारी की वजह से दिनांक 26 मई के दोपहर कुल्लू अस्पताल में देहांत हो गया।प्रशिक्षण में होने की वजह से उनके दाहसंस्कार में भी नहीं जा पाया। कांगड़ा वापस पहुंचते ही 2 दिन जसूर में वापिस अपने दफ्तर में लगा कर इस दुख की घड़ी में अपने चचेरे भ्राताओं से संवेदनाएं प्रकट करने व मिलने हेेतू अवकाश ले कर कुल्लू निकल गया।वैसे भी बीच में 5 जून को ईद की राजकीय अवकाश भी थी। दिवंगत चाचा जी की 13वीं 7 जून को कुल्लू के बदाह गोम्पा में था। उक्त दिन सभी नज़दीकी रिश्तेदार वहां मिले।
Sh.NG Bodh Sir |
दिनांक 08.06.2018 को निर्धारित समय पे मुझे ठीक 12:30 बजे दोपहर वरिष्ठ लोगों ने कुल्लू में पिक अप किया।जिस वाहन में जाना था यह टेक्सी जायलो थी।गाड़ी में विराजमान सभी सीनियर जनों को दुआ-सलाम कर के मैं भी बैठ गया।भून्तर चौक में एक अन्य वरिष्ठ साथी को भी पिक अप कर के टेक्सी के उस्ताद अनिल नामक लोकल नोजवान ने अब सब के रकसैक टेक्सी के छत पर फिक्स कर दिए।
अब चालक के अतिरिक्त कुल 7 जनें थे।यह थे:-
1).श्री ऐन.जी.बौद्ध(हिमाचल बिजली बोर्ड से रिटायर सीनियर इंजीनियर),
2).श्री गुलाब चंद गेलौंग(इंश्योरेंस सेक्टर से रिटायर मुख्य महा-प्रबन्धक),
3)श्री रंजीत ठाकुर(राष्ट्रीय ऑर्डिनेंस फेक्ट्री से रिटायर एक वरिष्ठ अधिकारी)
4).श्री प्रेम सिंह थमस(स्टेट बैंक आफ इंडिया से रिटायर ऐ. जी.एम)
5).श्री टशी छेरिंग(रिटायर सीनियर ब्रांच मैनेजर इंडीयन ओवरसीज बैंक)
6).श्री अजेय कुमार(प्रबन्धक, इंडस्ट्रीज़ विभाग,हिमाचल सरकार, मंडी)
अब खूब हंसी मजाक और बातचीत के साथ हम लक्ष्य की तरफ कूच करने निकल पड़े।कुल्लू के भून्तर हवाई अड्डे से आऊट सुरंग तक की कुल दूरी 19 किलोमीटर है।अब आऊट सुरंग के दक्षिणी छोर से बंजार और सैंज घाटी को जोड़ने वाली सड़क को पकड़ना पड़ता है। यहां सुरंग से बंजार की कुल दूरी 25 कीलोमीटर है। बंजार से तीर्थन घाटी का गुशैणी 10 किलोमीटर दूर है। गुशैणी से हमारा अंतिम पड़ाव बठाढ़ 9 किलोमीटर है। कुल्लू से कुल दूरी थी लगभग 80 किलोमीटर। ओट टनल से कुछ ही दूरी पर लारजी से पुल पार कर के बंजार को अलग रास्ता पकड़ना पड़ता है।यह सड़क है ओट से सैंज,हाई-वे नम्बर 305
बंजार बाजार से कुछ पहले एक खुंदन नामक मौड़ है,वहां से तीर्थन नदी के साथ आगे हमारी गाड़ी चल पड़ी। बातचीत करते-करते पता ही नहीं चला कि कब हम तीर्थन घाटी के मूँगला में पहुंच गए।तीर्थन घाटी वह घाटी जो मशहूर ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क के लिए विश्व विख्यात है जो कुल 765 वर्ग किलोमीटर में फैला है।इस घाटी को वर्ष 2014 में सँयुक्त राष्ट्र संघ के UNESCO ने विश्व धरोहर का दर्जा दिया था।इस खूबसूरत घाटी का समुद्रतल से औसतन एलिवेशन 1600 मीटर के करीब है।
तीर्थन घाटी की जब बात आती है तो सेराज घाटी के 5 कोठी से चुने गए बंजार के प्रथम विधायक स्वर्गीय श्री दिले राम शवाब की बात न करें तो कुछ अधुरा रहेगा। वह हिमाचल प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री व हिमाचल निर्माता डा. यशवंत सिंह परमार की सरकार में दो बार(1967-72) विधायक रहे। वह एक महान वक़्ता,लेखक व पत्रकार भी थे।बताया जाता है कि जब विधान सभा में वह बोलते थे तो सदन में खामोशी छा जाती थी।
उन कड़क विधायक को सब तसब्बुर से उन्हें सुनते थे।जब पिछली सदी के 90 के दशक में हिमाचल में विद्युत दोहन की बात चली तो तीर्थन घाटी के नालों में भी विद्युत की अपार संभावनाएं देखी गयी।किन्तु शवाब साहब ने हर सूरत में कोई भी हाइडल प्रोजेक्ट को वहां लगाने से साफ इनकार कर दिया।उन्होंने इस के लिए जनता को संगठित कर के घोर विरोध किया और हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी डाली।उनका यह प्रयोजन सफल रहा और तीर्थन घाटी बच गया।इसलिए तीर्थन घाटी की सौम्यता व सुदंरता को संजोय रखने में दिले राम शवाब जी का बहुत बड़ा योगदान रहा है।वर्ष 2018 में जब वह स्वर्ग सिधारे तो उनकी उम्र 90 से ऊपर थी।
Sh.Dile Ram Shavab |
Bashleu Pass,Thanks Google Earth |
Bathad |
Station Mungla |
अब करीबन 3:30 बजे हम अब मूँगला से बठाढ़ को निकल पड़े।एक पुलिया पार करते ही बरशेणी नामक जगह पहुंचे अब हम तीर्थन नदी के दूसरी ओर थे।करीब 4:20 पे हम अंतिम पोइन्ट बठाढ़ पहुंचे।यहां पे जिस होम-स्टे में ठहरने का इन्तेज़ाम किया गया था, उस के मालिक श्री ठावे राम जी बेसब्री से हमारा इन्तेज़ार करते दिखे।
Home Stay at Bathad |
Bathad Water Fall |
ठावे राम जी चाय पिलाने के बाद लोकल में कुछ दिखाने के लिए हमें एक नाले की तरफ ले गए जो लोकल स्कूल के कुछ आगे था।थोड़ी दूरी पर एक सुंदर बहते नाले के ऊपर बने पुलिया को पार कर के वह हमें पुल के नीचे ले गए।अरे वाह।क्या दृश्य था उसी नाले का एक नेचुरल वाटर फाल था जिस के पानी के ठंडे छींटे हमारे शरीर को छू रही थी।ऐसी मनोरम जगह में सभी मेम्बरान बेहद ताज़गी महसूस कर रहे थे और खुशी सब के चेहरे से साफ झलक रही थी।
अब सन्ध्या की बेला में ठावे राम जी ने अपने होम स्टे में बेहद लज़ीज़ रेनबो ट्राउट मच्छी व मनसन्दीदा खान-पान पेश किया।रात्रि के 11 बजे तक खूब हंसी-मजाक व गप-शप मार कर व वोडका व बेकार्डी रम की बोतलें गटक कर सभी चिर निद्रा में चले गए।
सुबह सबसे पहले मैं और नवांग अछो जी करीबन 4:30 पे जागे।वे कुछ बुद्ध मन्त्र पढ़ रहे थे और योग भी कर रहे थे।मैंने भी लगे हाथ कपाल भाती और अनुलोम-विलोम किया।बाहर बठाढ़ का दृश्य बड़ा मनोरम था। मैंने बाहर जा कर कुछ घेड़ी मारी और कुछ एक्सरसाइज़ भी की।थोड़ी देर में सभी जाग चुके थे।
6:30 बजे हम ने ब्रेक फ़ास्ट किया और अब ठीक 7 बजे हम बशलेऊ जोत की एक्सकर्शन पे निकल पड़े।
प्रधान ठावे राम जी भी अपने बेटे के साथ बतौर पोर्टर व गाईड ऊपर जोत तक निकल पड़े।उन्होंने अपने बैग में खाने-पीने की सभी आवश्यक चीजें रखीं थीं।हंसी मजाक करते,गाना गाते सभी मस्ती में सराबोर थे।अब हम बठाढ़ से करीबन 3 किलोमीटर ऊपर आ गए थे,जहाँ हमने चाय के लिए प्रथम विश्राम किया।ऊपर खेतों-खलियानों के बीच कुछ घर भी थे यानी ऊपर तक आबादी बसी थी।
करीब 9 बजे जंगल के बीच एक दूसरे पड़ाव पे हम फिर रुके।ठावे राम जी ने बताया कि इस जगह का नाम क्वार्टर है क्योंकि आऊटर सेराज के प्रवास के दौरान यहां से आते-जाते समय कुल्लू की रानी इस जगह पर विश्राम करती थी।
A spot in Jungle known as Quarter |
Nag Fanni |
अब अल्पाइन के घने जंगलों में जहाँ बड़े-बड़े वृक्ष गिर कर सड़ चुके थे,को लाँघते-फांदते हम लोग ऊपर एक और खुले पड़ाव पे पहुंचे जहां बैठने लायक घास थी। यहां 15 मिनट विश्राम करने के उपरांत चल पड़े।अब लग रहा था कि बशलेऊ दर्रा काफी करीब है।तीर्थन घाटी की तरफ के पहाड़ अब दिख रहे थे जो अभी तक जंगलों की वजह से नहीं नज़र आ रहे थे।
रास्ते में भैंसों के गोबर से प्रतीत हो रहा था कि आज-पास ही गुज्जर हैं किन्तु कुछ ऊंचाई पर पहुंचने पर ढेरों भैंसों के झुंड दिखाई दिया।भैंसे हमें ऐसे निहार रहीं थी मानो हम कोई दुश्मन उनके इलाके में घुस आए हों।
ठीक 12:30 बजे हम बिल्कुल बशलेऊ दर्रे के साथ लगते एक विशाल मैदाननुमा जगह पहुंच गए यानी डेस्टिनेशन को अब एचीव कर लिया गया था।
यह मैदान एक विशाल गोल्फ-कोर्स की तरह दिख रहा था।ऊपर पश्चिमी दिशा की ओर एक गुम्बदनुमा पर्वत खड़ा था जो अदभुत दिख रहा था।मैदान में गुज्जरों के कई टेन्ट्स नज़र आ रहे थे। भैंसों के अलावा गायें भी चर रही थीं।गुज्जरों का एक कुत्ता हमारे पास मित्रता का संदेश ले कर आया और पास बैठ गया।ट्रेक्क़र्ज़ भाई लोग सभी थकान मिटाने के लिए मैदान के कुल्लुई छोर वाली तरफ दिखते बड़े-बड़े चट्टानों की ओट में बैठ गए।
यहां जोत में मृत जानवरों के ढेरों कंकाल,हड्डियां व सींग वगेरह बिखरे पड़े थे।इन्हीं हड्डियों से रात्रि को कुल्लू घाटी का मशहूर गिठु राक्षस जागृत होता है।गिठु राक्षस का मतलब है अग्नि के गठे जो अलग-अलग पीसेज़ में जलते हैं।यह राक्षस रात को दूर पहाड़ी पे नज़र आते हैं और तेज़ी से इधर-उधर भागते भी दिखते हैं।यह जलते और बुझते नज़र आते हैं।
वास्तव में इन हड्डियां यूरिया,फास्फोरस होता है।जब इन ऊंची पहाड़ियों में तेज हवा चलती है तो जोरदार ठोकर से इन ज्वलनशील तत्वों में कुदरती तौर पर अग्नि प्रज्वलित होती है।हवा से यह हड्डियां इधर-उधर बिखर कर जलती बुझती हैं। गिठु राक्षस वास्तव में यही है।
खैर अब जोत के मैदान में प्रधान ठेवा राम जी ने तुरन्त बिखरी लकड़ियों को एकत्रित किया और एक चट्टान की ओट में आग जला दी।
उनका मकसद पैक कर के लाई रोटियों को गरम कर के हमें लंच करवाना था।A Gujjar Bhai |
Point Zero,Bashleu Pass |
तो यह था बशलेऊ दर्रा। इस की समुद्रतल से ऊंचाई है 3277 मीटर या 10752 फ़ीट ऊंचा। यानी लगभग 11000 फ़ीट ऊंची जगह है यह।जलोड़ी जोत से यह कुछ ऊंचा है।जलोड़ी जोत की ऊंचाई 3120 मीटर है। बशलेऊ दर्रे के दोनों ओर पर्वतों की रेंज है।एक तरफ लंभरी रिज की श्रृंखला है तो दूसरी ओर श्रीखण्ड की तरफ बढ़ने वाली पर्वतमालाएं हैं।पहाड़ियों के ऊपरी मुख गंजे हैं किंतु वहीं कुछ नीचे घने जंगल हैं।इस दर्रे के बिल्कुल ऊपर हवाई जहाज का रूट है।शायद लदाख से दिल्ली वाले जहाज उड़ते हों।हमें भी नज़दीक से ऊपर जहाज के उड़ने की आवाज़ सुनाई दी।
Our trail route |
मैंने रास्ते में ठावे राम जी के पुत्र से पूछा कि बशलेऊ से क्या अभिप्रायः है।उसने बेहद स्टीक जवाब दिया।उसके अनुसार स्थानीय सेराजी बोली में इस शब्द का यदि सन्धिविच्छेद करें तो वह बनता है-"बेशा" और "लेऊ"।बेशा मतलब की बैठ जाएं । लेऊ का अर्थ था कर लेना था हो जाना।यानी इस जगह से तातपर्य यह था कि दोनों ओर से इधर-उधर दर्रे को क्रोस करते समय यहां थकान मिटाने के लिए कुछ देर बैठ जाना।
कुछ जयकारे मार कर हम ने अब आऊटर सेराज की इस घाटी को कदम रखा।अब नीचे को उतराई थी।कुछ जगह स्पाट ढलान है तो कुछ जगह आसान रास्ता है।दायीं और ढलान में हरी घास से लकदक चारागाह है जो बेहद खूबसूरत दिखता है।बीच में एक जगह पानी का स्त्रोत भी है जो राह में बह रहा था।यहां से बाघा सराहन मात्र 5 किलोमीटर होगा किन्तु एक जगह जंगल में रास्ता बेहद ढ़लान नुमा है जहाँ से फिसल कर गिर भी सकते हैं।चीड़ और कायल के पेड़ों की सूईनुमा बिखरी सूढ़ी काफी फिसलनदार थी जिस पे कदम सावधानी से रखना पड़ता है।
Baga-Sarahan |
अन्तिम उतराई में रास्ता पथरों से भरा पड़ा था।यह पत्थर जहां चलते वक्त रुकावट बन रहे थे,वहीं फिसलने से रोकने के लिए नेचुरल स्पीडब्रेकर का कार्य भी कर रहे थे।पहाड़ी से गिरते पानी का एक विशाल नाला अब गड़-गड़ कर के बह रहा था जो जंगल में बेहद जहीन नज़र आ रहा था।कुछ ऊपर उतरते समय बायीं ओर एक वहुत बड़ा वाटर फाल भी था,जिसे हमने सिर्फ दूर से निहारा।अब नाले के ऊपर बने एक लोहे की पुलिया को पार कर के हम लगभग बाघा-सराहन की धरा पर पहुंच ही गए।
अब समय था शाम के 4:30 बजे।पर्वत के आंगन में विशाल मैदान होने की पुष्टि पहले ही हो रही थी क्योंकि ऊपर ढलान में बाग-बगीचों के मध्य बने रास्तों से चलते हुए हमें पहले ही बहुत समतल इलाका होने का अहसास हो रहा था।जो नाला ऊपर से बह कर आ रहा था वह मैदान के किनारे से होते हुए कुहल के रूप में आगे बह रही थी।मैदान के किनारे इक्के-दुक्के होम-स्टे बने हुए थे।
तो आखिर हम अपने डेस्टिनेशन बाघा सराहन आखिर पहुंच ही गए।चलते-रुकते-थकते-आराम करते सुबह बठाढ़ से 7 बजे चले थे और शाम 4:30 बजे गन्तव्य बाघा सराहन पहुंच ही गए।यदि कोई अनुभवी व्यक्ति बठाढ़ से बाघा सराहन एक एवरेज से चले तो उसे मात्र 5 घण्टे लग सकते हैं।3 घण्टे ऊपर जोत पहुंचने में और 2 घण्टे उतरने में।हमारी टीम को 5 घण्टे की बजाए करीबन 10 घण्टे लग गए।
रात्रि भोज से पहले हल्का-फुल्का ड्रिंक्स लिया गया और हंसी-मजाक का दौर चलता रहा।फिर डीनर करने के उपरांत सब थकान मिटाने के लिए चिर-निद्रा में चले गए।
Jalori Pass |
राहुल जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। हालांकि मेने यात्रा नहीं की मगर ऐसा लगा कि मेने भी आपके साथ यात्रा की है। हर जगह के बारे में इतना बढिया लेख सचमुच में शानदार है। बधाई।
ReplyDeleteजीभी में आपका कजिन कोन है। कहीं जिभी कम्पनी वाला तो नहीं है।
राहुल जी बहुत ही सुंदर प्रस्तुति। हालांकि मेने यात्रा नहीं की मगर ऐसा लगा कि मेने भी आपके साथ यात्रा की है। हर जगह के बारे में इतना बढिया लेख सचमुच में शानदार है। बधाई।
ReplyDeleteजीभी में आपका कजिन कोन है। कहीं जिभी कम्पनी वाला तो नहीं है।
दिल की तहों से धन्याबाद जी।मेरा कज़िन एक अद्यापक है सर और वह भुट्टी कॉलोनी में सैटल्ड है।
ReplyDeleteVery beautiful write up.Great inspiring story.You appreciated my role in this expedition as NG Trekker.Thanks.Please keep writing blog.
ReplyDeleteसुंदर यात्रा वृत्त । अरसे बाद कोई लेख पूरा पढ़ पाया । बशलेऊ यात्रा बहुत स्मरणीय थी । उस का खूब समृद्ध हरा जंगल हमेशा याद रहेगा । हम ने राणा जी को खूब याद किया । वे जंगल से हमारा गहन परिचय करा सकते थे ।
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