Way to Kareri Lake |
आज दिनांक 09 मई 2019।रोज़ की तरह गुज्जर के तालाब के कार्यालय में आफिस-आफिस खेल रहा हूँ।पंजाब की सीमा से सटे इस जगह में अब कुछ दिनों से गरमी बढ़ती महसूस हो रही थी। गरमी से टम्परेरी निजात पाना अवश्य लग रहा है वरना भट्टी में अपना भी तंदूरी चिकन बनना सम्भव है।
अचानक खोपड़ी में ताकत लगा के सोचा कि क्यूं न आफिस के मुस्टंडों को टटोलूँ पूछुं कि क्या कल-परसों आने वाली दो छुट्टियों में कहीं घूमने-फिरने का मन है या कमरों में ही सड़ना है।मैंने अपने ऑफिस के क्वालिटी विंग के सबऑर्डिनेट नन्द किशोर से पूछा कि क्या करेरी झील की घेड़ी मारें।उस की पॉजिटिव बाडी लेंग्वेज से पता चल गया कि वह भी आफिस के कार्य से कुछ राहत पाना चाहते हैं।उसने तुरंत हामी भर दी।
हमारे नन्द किशोर जी कांगड़ा के गग्गल के पास ही किसी खूबसूरत गांव भड़यारा के वासी हैं।नन्द के बाद फिर मैंने बिहार के सासाराम के युवा सबऑर्डिनेट प्रभात कुमार को पूछा कि चलना तो नहीं करेरी,उस ने कुछ टालमटोल के बाद हाँ कर दी। दरअसल वह अपने बिहार-यू.पी.के बंदों में कम्फर्ट महसूस करता है। उसी वजह से उसने बताया कि सुरेंद्र यादव भी रेल से वापिस पठानकोट पहुंच रहे हैं,उन्हें भी करेरी लिए चलते हैं।यह सुरेंद्र यादव नामक महानुभाव प्रभात से दफ्तर में सीनियर है,इलाहाबाद से है।मैंने प्रभात से कहा कि भई उसे साथ ले जाने का ज़िम्मा तुम्हारा है,तुम्हीं उसे मोबाइल पे पूछ लो।प्रभात ने कुछ समय उपरान्त बताया कि यादव भी तैयार है।बस अब करेरी झील जाने का खाका तैयार हो चुका था।
तारीख 10 मई 2019।नन्द किशोर,प्रभात और यादव को मैंने आज ट्रेक्किंग के लिए भी अपना-अपना बेग तैयार कर के लाने को कहा था।कुछ आवश्यक लोजिस्टिक्स भी वाट्सऐप के जादुई सन्देश के माध्यम से चस्पां कर दिया था।मैं वट्सऐप को कलयुग का नारद मुनि मानता हूं जो तुरन्त खबर इधर-उधर कर देता है।
अपने-अपने बेग लेकर आफिस आने का यह परपज़ था कि शाम को हम जस्सूर से सीधे करेरी गांव निकल जाएंगे और वहां किसी होम-स्टे में रात्रि विश्राम करेंगे।फिर प्रात: वहीं से शुरू होगी करेरी झील की हाईकिंग।नज़दीक के गांव में पहुंचने से समय भी बचता और पहुंचने में आसानी भी रहेगी।
शाम तक यादव भी दिल्ली से ट्रेन द्वारा जसूर पहुंच गया।ठीक 4 बजे आफिस का कार्य समाप्त करते ही हम जसूर से शाहपुर की ओर कूच कर गए।गाड़ी मेरी वही पुरानी ह्युंडई की आय वाली टेंन जो बहुत साथ देती है।गप-शप मारते हुए ठीक 5 बजे सांय हम शाहपुर पहुंचे जहां से करेरी गांव के लिए एक लिंक रोड डायवर्ट होता है बायां निहरिकी से।शाहपुर में हम ने शाम के लिए कुछ बीयर की बोतलें,फल व फ्रूट-केक,मैगी,टाफियां आदि खरीद लीं।
प्रभात खूब पिकनिक के मूड में था।उसने कहा कि चिकन ले चलते हैं और जंगल में लकड़ी जला कर पकाएंगे।लेकिन मैंने साफ इनकार कर दिया क्योंकि यह लोग हाईकिंग से वाकिफ नहीं थे।10 किलोमीटर ऊपर चढ़ना फिर उसी दिन उतरना,इतना आसान नहीं है।मैं पहाड़ी तो इस का आदी हूं, किन्तु इन लोगों के स्टेमिना पे शक था क्योंकि इतनी हाईकिंग इन्होंने लाइफ में बहुत कम की होंगी।कटरा से वैष्णों माता ट्रेक इन लोगों ने किया है, लेकिन भई इस यात्रा और उस यात्रा में बहुत अंतर है। वह खुली सड़क पे है तो यह जंगलों में पगडंडियों से है।जंगल में भोजन पकाने का मतलब था,समय की बर्बादी,मैंने रेडीमेड खाने-पीने की चीज़ों पे जोर दिया।
खैर सामान वगेरह कार की डिक्की में डालते ही मैंने शाहपुर बाज़ार के कुछ आगे एक बाएं हाथ वाले लिंक रोड पे कार मोड़ ली।यह बायां निहारिका से तल माता मंदिर को जाने वाली सड़क है और यही हमें करेरी गांव तक पहुँचाएगी। धीरे-धीरे अब कार ऊंचाई महसूस करने लगी क्योंकि अब फर्स्ट और सेकिंड गेयर पे ज्यादा जोर लगने लगा। खतरनाक अंधे मोड़ों पे हर जगह हॉर्न मारनी पड़ रही थी।करीब 20 मिनट के बाद हम लोग एक बरीढी नामक गाँव पहुंचे।बरीढ़ी से कुछ पीछे ऊपर पहाड़ी पे तल माता का बेहद खूबसूरत मन्दिर है।
Baridhi village on the way to Kareri |
इस गांव के कुछ आगे सड़क फिर दो तरफा हो रही थी।मैंने अंदाज़ा लगा कर ऊपर मौड़ की तरफ ले लिया।थोड़ी देर में हम सल्ली गांव में पहुंच गए।यहां कुछ दुकाने भी थीं।अब धीरे-धीरे एल्पाइन जंगल शुरू हो गया।घने जंगल के मध्य बनी सड़क मेटल्ड थी।आगे जंगल से एक उतराई वाली मौड़ पे एक पुलिया दिखाई दिया।मैंने अंदाज़ा लगाया कि वहीं कहीं से करेरी झील का ट्रैक रुट आरम्भ होगा।मैं सही था।
जैसा कि अंधेरा छाने लगा था और हम लोगों ने रात्रि विश्राम के लिए कोई भी रैन-बसेरे का इंतज़ाम नहीं किया था।मुझे यह यकीन था कि करेरी गांव में होम-स्टे मिल ही जाएगा।करेरी झील से निकलने वाले उस नाले को पार करते ही कुछ आगे मुझे वहां सड़क के नीचे जंगल में एक विशाल होटल दिखाई दिया।पूरी इमारत नई नवेली दुल्हन की तरह थी।मैंने यादव और नंद को वहां नीचे जा कर नाइट-हाल्ट के लिए कमरा पूछने को कहा।कुछ देर में उन्होंने दूर से इशारा करते हुए बताया कि वहां रूम अवेलेबल हैं।
Pathania's Morya Hotel |
मैं अपनी कार नीचे उस होटल के प्रांगण में ले गया।इतने में अंदर से मालिक साहब बाहर निकले।मैंने गर्मजोशी से उन्हें बधाई दी कि इतनी खूबसूरत जगह में इतना बढ़िया विशाल होटल। वे भी तुरन्त घुल-मिल गए।यह जनाब जंगलात महकमे से रिटायर थे और इन का पूरा नाम जगदीश पठानिया था। अंडर-कंस्ट्रक्शन इनके होटल में वैसे अभी बाहर कोई साइन बोर्ड नहीं लगा था किंतु होटल का नाम इन्होंने मौर्या रखा था।हमने उनसे कुछ इजाज़त ले कर आगे करेरी गांव तक घूमने को कहा।कार में कुछ ही दूरी पर एक मौड़ पे आ रुके जहां से नीचे करेरी गांव का पूरा दृश्य दिख रहा था।किंतु अब अंधेरा छाने की वजह से साफ नहीं दिख रहा था।गांव रोशनी से टिमटिमा रहा था।यहां एक बात गौर फरमाने वाली है कि करेरी गांव अलग है और करेरी झील अलग है।खैर थोड़ी देेेर बाद हम सब वापिस होटल पहुँच गए।पठानीया साहब ने ऊपरी मंजिल के दो कमरे हमें दिखाए।यह बखूबी मॉडर्न गेजेट्स से परिपूर्ण कमरे थे।टी.वी.वगैरह, बाथरूम में गीज़र सब लगे हुए थे।हम ने अपने लाए हुए बीयर हलक से नीचे उतारना शुरू कर दिया।पठानिया साहब भी अपना ब्लेन्डर प्राइड का कोटा ला कर हमारे साथ गपशप लगाने बैठ गए।उन्होंने अपने बारे में बताया कि कैसे जो वो जंगलात महकमे में इसी इलाके में बतौर बी.ओ.पोस्टिड रहे और कैसे उन्होंने इस खूबसूरत जगह पे ज़मीन खरीदी।उन्होंने करेरी झील से भी ऊपर मनकयानी पास के पास के लमडल झील आदि के बारे में भी बताया।
थोड़ा बहुत खा-पी के झूमने के बाद हम लोग निचली मंज़िल के डायनिंग हाल में आए और गर्मागर्म डीनर करना शुरू कर दिया।कुक को सुबह के लिए ब्रेकफास्ट में परांठे बनाने का आदेश दे कर हम नींद को आगोश में चले गए।
Team Kareri |
सुबह ठीक 5:30 पर मेरी आँख खुली।बाहर निकला तो लॉबी से लाजवाब नज़ारा दिख रहा था।जंगल से लकदक खूबसूरत पहाड़ियां,ठंडी-ठंडी हवा भी चल रही थी।मैंने सब को जगा दिया कि अब नहा धो के चलने को तैयार हो जाओ।ठीक 7 बजे बढ़िया परांठे खा कर हम ने पठानिया साहब का बिल चुकता किया और गन्तव्य को निकल पड़े।
आगे करेरी झील से बहने वाले नाले जिस का नाम न्यूण्ड बताते हैं,के ऊपर बने पुलिया पर हम पहुंचे और वहां से दाएं हाथ दिखती पगडंडी पे उतर गए।यह ट्रेल या पगडंडी बिल्कुल स्पष्ठ है,इस लिए कोई इधर-उधर गुम होने का अंदेशा नहीं है।पेड़ों के झुरमुटों से लगती यह पगडंडी करीबन एक किलोमीटर तक ऊपर चढ़ते वक्त नाले के साथ-साथ दायीं ओर थी।अब आगे यहां से नाला पार कर के दूसरी तरफ लांघना था।इस स्पॉट पर एक लोकल नोजवान ने छोटा सा चाय-पानी का तम्बू गाड़ रखा था।
Nyund Stream which flows through Kareri Lake |
Companions in full Josh |
अब हम सन 1994 में घोषित धौलाधार वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में घुस चुके थे।यहाँ समुद्र तल से लगभग 7 से 9 हज़ार फिट की ऊंचाइयों में पाए जाने वाले पेड़ जैसे कि देवदार(Pine),फर(Spruce),शाहबलूत(Oaks),शंकु वृक्ष(Conifer) व बुरास वृक्ष (Rhododendrons) के जंगलों के बीच सरपीली पगडंडियों को रौंदते हुए कुछ देर में हम एक जगह ऊपर पहुंचे जहां पे नाले में एक लोहे की पुलिया स्थापित थी।
On the Half way trek to Kareri |
अब आगे नाले के साथ चलते फिर चढ़ाई आरम्भ हो गई।कुछ ऊपर जा कर रास्ते में एक विशाल हिमखण्ड था।
यहां से पार करना बेहद खतरनाक था।मैं बिना कोई लाठी के सहारे इसे तुरतं पार कर गया किन्तु मेरे साथियों को पार करने में बेहद मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा था।अनुभव की कमी,फिसलन जूते बाधा बन रहे थे।खेर मैं काफी ऊपर आ कर उन्हें निहार रहा था और उनके फिसलने पर मन ही मन हंस भी रहा था।एक मोटा पर्यटक स्टूडेंट फिसल कर जमे बर्फ में दूर नीचे जा पहुंचा।शुक्र है कि वह किसी करेवास या नाले के गहरे खड़ में नहीं गिरा वरना उसे चोट लग सकती थी।
जैसे-जैसे ऊंचाई आ रही थी,नाले के साथ बर्फ की परत पे चलना पड़ रहा था।मैंने अनुभव किया कि मेरे साथी बहुत धीरे चल रहे हैं और झील तक पहुंचने में वे बहुत समय लगाएंगे।इस लिए मैंने थोड़ी रफ्तार पकड़ ली ताकि एक घण्टे पहले पहुंच कर झील में फोटोग्राफी कर सकूं।कुछ ही दूरी पर मन्दिर की छत नज़र आने लगी।कुछ वापस उतर रहे लोगों ने बताया कि मैं झील के मुहावने पहुंच ही गया हूँ।
वाह, ऊपर पहुंच के क्या मस्त नज़ारा था।वोह झील जिसे देखने के लिए मैं गत एक वर्ष से तरस रहा था,आज बिल्कुल उस को नंगी आंखों से देख रहा था।वादियों में चारों ओर बर्फ ही बर्फ दिख रहा था जिन से रिस कर शीतल जल इस जादुई झील में मिल रहा था।झील के बहाव को रोकने के लिए नाले की ओर सीमेंट से दीवार लगाई गई है ताकि झील का पानी एकदम न बह सके।
झील के मुहाने पे टीले पे एक सुंदर मन्दिर है जो प्रभू शिव और शक्ति को समर्पित है।मन्दिर के पास पत्थरों को जोड़ कर कच्चे डेेहरे बनाये गए हैं जिस में रात्रि विश्राम के लिए श्रद्धालु रुक सकते हैं।साथ ही कुछ ढाबे भी थे,जिन्हें स्थानीय युवा रोज़ी-रोटी के लिए चला रहे हैं।
तो यह है करेरी झील जिस की समुद्र तल से कुल ऊंचाई 2934 मीटर(9626 फ़ीट) के करीब है।एक साफ पानी की झील जिसे कुमारवाह झील के नाम से भी जानते हैं।यह झील सामने नज़र आ रहे मिनकियानी दर्रे की पहाड़ियों से निकलते पानी से बना है।यहां से चम्बा को पहुंचाने वाला यह मिनकियानी दर्रा करीबन 4 किलोमीटर ऊपर है,लेकिन सीधी खड़ी चढ़ाई दिख रही थी। मिकियानी दर्रे के अतिरिक्त दो और दर्रे जिन का नाम भलेणी व गज है,वह भी यहां से करीबन 13-15 किलोमीटर पश्चिम दिशा में है।करेरी को स्थानीय लोग माता मानते हैं।कृष्ण अष्टमी और राधा अष्टमी के दिन यहां श्रद्धालुओं का तांता लगता है।
मिनकयानी दर्रे की ऊंचाई:4250 मीटर
बलेणी दर्रे की ऊंचाई:3710 मीटर
ग़ज़ दर्रा:4140 मीटर
बलेणी दर्रे की ऊंचाई:3710 मीटर
ग़ज़ दर्रा:4140 मीटर
मिनकयानी की तरफ गर्दन उठा के देखता हूँ तो ऊपर बहुत बर्फ दिखाई दे रही है।बिल्कुल झील के साथ लगते एक ढाबा संचालक से मिकियानी दर्रे के बारे में पूछना चाहा तो साफ दिखा कि उस का इंटरस्ट मुझ में नहीं है बल्कि वह चाहता था कि मैं उस से कुछ बिस्कुट वगेरह खरीदूँ तभी वह मेरा जवाब देगा।उस के स्वार्थ और रूखे व्यवहार का आंकलन मैंने इस जादुई झील में पहुंच कर मनोवैज्ञानिक तौर पर कर लिया।अरे भई सच्चा है,यही तो महीने हैं कमाई के।अभी हम घुम्मकड़ियों से नहीं कमाएगा तो कब कमाएगा।फालतू बातों के लिए समय कहाँ था उस के पास।
Lam Dal,Thanks Google Earth |
खैर नीचे होटल मौर्या के मालिक साहब पठानिया जी गत रात्रि को बता ही दिया था कि करेरी से भी ऊपर जबरदस्त नज़ारे हैं।उन्होंने जंगलात में नॉकरी के समय मिनकयानी को लाँघा था।वे बयां फरमा रहे थे कि ऊपर जोत पार करते ही बारी-बारी से 7 झीलों के दर्शन होते हैं।इन में से कुछ मुख्य झीलों के नाम हैं:-
लमडल, नागर झील,काली कुंड,ड्रा-कुण्ड,चन्द्रकूप,धाम गौरी,काली डल, नाग डल व नाग-डली वगेरह।
लम डल धौलाधार पर्वतमाला की सबसे बड़ी मीठे पानी की झील है जो 3970 मीटर एलिवेशन पे है,यह गूगल अर्थ से साफ दिखता है। चन्द्रकूप झील (4192 मीटर)बहुत ज्यादा ऊंचाई में है। इंद्राहार की चोटी पर पहुंचने का रास्ता भी ऊपर वहीं कहीं से है बताते हैं।
मैं समझ गया कि ऊपर धौलाधार की इन उच्च चोटियों पे पहुंच के नज़ारा कैसा दिखता होगा।एक तरफ कांगड़ा जिला का मैदानी इलाका नज़र आएगा,दूसरी ओर चम्बा के ढेरों गगनचुम्बी पर्वतमालाएँ जो बड़ा-भंगाल से लाहौल तक पीर-पंजाल रेंज के रूप में फैले हैं।लेकिन झील वाले उच्च वीरान एरिया में जाने के लिए दमखम वाले बन्दे चाहिए।ज्यादा समय चाहिए, पोर्टर चाहिए,तंबू वगेरह चाहिए और हाई-ऐयल्टीच्यूड को सहने की क्षमता भी चाहिए।यकीनन उधर से ट्रेक करके चम्बा के चुआड़ी या गहरा में पहुंचा जा सकता है।
खैर इस वक्त समय हो चुका था दिन के 12:30,मैंने झील के नज़ारों को कैमरे में कैद करने शुरू कर दिया।झील के उस पार भी जाना चाहता था किन्तु त्याग दिया क्योंकि चारों ओर बर्फ की चादर बिछी थी।करीब 45 मिन्ट्स के बाद मेरी टीम के मेम्बर भी थकते चलते झील में पहुंच ही गए।मैंने उन्हें अपना रकसैक पकड़ा दिया और झील के उस किनारे की तरफ चल दिया जिधर गद्दियों के ट्रांज़िट चबूतरे बने हुए थे। उधर को जाना काफी मुश्किल था क्योंकि ढलान में बर्फ थी और फिसल कर सीधे झील में गिर सकते थे।
दूसरी ओर से झील बेहद लाजवाब दिख रही थी।मैं वीरान पड़े गद्दियों के चबूतरों की तरफ गया वहां कोई नहीं था क्योंकि अभी मई के महीने ऊपरी इलाकों में ज्यादा बर्फ होने के चलते गद्दियों का मूवमेंट नहीं था।यहां से कैमरे द्वारा झील का वीडियो बनाने के चक्कर में बैटरी खत्म हो गयी।इस तरह फोटोग्राफी मेरी यहीं बंद हो गयी।
खैर वापिस मन्दिर पे पहुंचा।जैसा कि धौलाधार की यह ऊँचे स्पॉट मौसम के अचानक मूड परिवर्तन के लिए बदनाम है,ठीक वैसे ही अचानक ऊपर मिनकियानी दर्रे तथा आसमान में बादलों की गड़गड़ाहट शुरू हो गयी थी।घनघोर घटा के बीच छिट-पुट बारिश भी शुरू हो गई।मेरी टीम ने साथ लाए मैगी को पकाने का आर्डर एक ढाबे वाले को दिया था।गर्मागर्म मैगी खा के असीम तुष्टि महसूस हुई।इतने में तेज बारिश शुरू हो गई,इसलिए सब लोग सैलानियों के लिए बने पत्थरों के डेहरों में दुबक गए।कुछ युवा लड़के-लड़कियां जो लवली यूनिवर्सटी जलंधर से थे,वे भी अंदर घुस गए।
Nand Kishor,Prabhat,Me and Surendra Yadav |
मैंने अपना माउथ-आर्गन निकाला और एक पुराने गाने की धुन छोड़ दी।कुछ लकड़ियां इकट्ठी कर के बोन-फायर भी किया गया।अब शुरू हो गया गीत-संगीत का कार्यक्रम।यूनिवर्सटी के लड़के मजेदार नोन-स्टोप गाना गाने लगे।हम सब उनके साथ शामिल हो गए।जबरदस्त माहौल बन गया था।इतने में बारिश थम गई।मैंने घड़ी देखी तो इस वक्त समय हो रहा था 2:45 दोपहर के।मैंने इशारों में अपनी टीम को प्रस्थान करने के लिए कहा।वहां ढाबे वाले ने बताया यदि हम वहां रुकना चाहते हैं तो प्रतिव्यक्ति 800 रुपए में रात्रि विश्राम के लिए टेंट उपलब्ध हैं।जैसा कि हमारा वहां ठहरने का प्लान नहीं था,इस लिए हम सभी अनजान युवाओं को अलविदा कह कर वापस नीचे को चल दिए।
चूंकि मेरे टीम मेम्बरान को ऊपर आते वक्त बर्फीले एवलांच में दिक्कत हुई थी,तो यह निर्णय लिया गया कि नीचे उतरते समय नियुण्ड नाले के दूसरी तरफ से उतरा जाए।नाले के दूसरी तरफ जाना वैसे आसान नहीं था,किन्तु हम ने पार कर ही लिया।दूसरी तरफ गद्दियों की हल्की पगडंडिया बनीं थी,उसे फॉलो कर के करीब 1 किलोमीटर नीचे आ कर फिर से दूसरी तरफ एक पोइन्ट से सभी पार हो कर फिर मेन ट्रेक रूट पे पहुंच गए।इस तरह करीब 4:30 बजे हम लोग फिर से होटल मौर्या पहुंचे जहां मेरी कार खड़ी थी।यहां होटल के मालिक पठानिया जी और उनके बेटे मिठू उर्फ अभिनय पठानिया को अलविदा कर हम लोग वापिस शाहपुर को रवाना हुए।
करीब शाम 5:30 पे हम लोग मटौर-पठानकोट हाइवे पर पहुंचे।वहां नन्द किशोर को अलविदा कहा और बाकी के हम तीन लोग नूरपुर-जस्सूर को निकल पड़े।ठीक 6:45 सन्ध्या की बेला में हम लोग वापस जस्सूर पहुंचे और अपने-अपने क्वार्ट्ज़ को एक मीठी याद लिए थक कर सो गए।हमारी दो दिन की अवकाश फालतू नहीं गई बल्कि करेरी झील की यात्रा ने हमारा दिन लाजवाब बना दिया।